वतॆमान काल में योग एवं योगासन को समानाथीॆ माना जाता है.स्वस्थ्य शरीर में हीं स्वस्थ्य मन का निवास हो सकता है.परंतु योग वस्तुत: आत्मा की स्वस्थता पर बल देता है.योग सूत्र के दशॆन की मौलिक व्याख्या पातंजलि के योग सूत्र नहीं हैं.उन्होंने मात्र इनका संकलन एवं पु...
परमात्मा देवों का देव है.उनमें द्वेष या नफरत का भाव लेशमात्र नीं है.जो उन्हें लच्छ्य करके प्राप्त करना चाहते हैं परमात्मा उनकी समस्त इच्छायें पूरी करते हैं. ०परमात्मा का कभी छरण या नाश नहीं होता.वे हमारे अंतरात्मा की चेतना हैं.वे परमानंद हैं.वे अनंत हैं.व...
यह संसार आत्मा के अलावे कुछ भी नहीं है.आत्मा के सिवा दूसरी कुछ भी चीज नहीं है.घडा और सभी मिट्टी के वतॆन केवल मिट्टी हीं है.इसी तरह बुद्धिमान व्यक्ति के लिये यह देखी गई सारी वस्तुयें संसार केवल आत्मा है. प्रात:काल सूयॆ उदय के साथ हीं अंधेरा समाप्त हो जाता...
भज गोविदं,भज गोविदं ,भज गोविदं मूठमते.–मूखोॆं गोविंद को भजो.मृत्यु का समय नजदीक आने पर तुम्हारी संपूणॆ विद्वता किसी काम की नहीं रहेगी. पुनरति जन्मं पुनरति मरणं—अनेकों बार जन्म,अनेकों बार मृत्यु अनेकों बार माँ के पेट में शयन !!इस संस्र सागर को...
परमात्मा असीम आनंद का स्रोत ,केन्द्र एवं भण्डार है केवल ब्रम्ह हीं वास्तविक सत्ता है.जो साधक सत्य जानते हैं वे उसी पर शरणागत होते हैं. परमात्मा बाहरी इंन्द्रियों के द्वारा अनुभव जन्य नही है पर वह हृदय के भीतर सतत विद्यमान है.हम उसे अपने प्रेम से जान सकते...
अग्यान का अंत हीं मोच्छ है.ग्यान अग्यान का नाश करता है.प्रकाश अंधकार को दूर करता है. आत्मा पर शरीर (अनात्मा) का बोध हीं अग्यान है.नश्वर शरीर पर आत्मा का एकत्व बोध हीं अग्यान है. संसार की सत्यता भ्रम है और यह भ्रम पूणॆत:असत्य है.संपूणॆ संसार माया एवं वैर...
ॐश्री गणेशाय नम: श्री ईशोपनिषद.उपनिषद वेदों के अंश हैं.सम्पूणॆ वैदिक ग्यान का सार वेदान्त सूत्र के रूप में वणिॆत है.महषिॆ नारद ने अपने गुरू व्यासदेव की आग्या से वेदांत सुत्रों की रचना की.वेदांत सूत्र पर गोविंद भाष्य,रामानुजाचायॆ भाष्य ए...
देख्यो रुप अपार मोहन सुन्दर स्याम को वह ब्रज राजकुमार हिय जिय नैननि में बस्यो। रसखान ने जबसे मोहन के अपार सुन्दर श्याम रुप को देखा है- उस ब्रज के राजकुमार ने उनके हृदय मन मिजाज जी जान तथा आंखो...
तब बा वैश्णवन की पाग में श्री नाथ जी का चित्र हतैा सो काठि के रसखान को दिखायो तब चित्र देखत हीं रसखान का मन फिरि गयो। उन वैश्णवों के हाथों में जो श्री कृष्ण का का चित्र था उसे निकाल कर उन्होंन...
पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु। दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु। हवा वह गुरू है जो आदमी के जीवन को चलायमान करता है। पानी पिता और पृथ्वी माॅ सदृश्य है। इन्हीं दोनों के मेल से सारे घास फूस पौधे पत्ते जन्म लेते हैं। तब दिन और रात लोगों...